बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 समाजशास्त्र - सरल प्रश्नोत्तर
महत्वपूर्ण तथ्य
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था साझी अर्थव्यवस्था के रूप में कार्य करती है। अर्थव्यवस्था को उदारीकरण के नाम से भी जाना जाता है।
औद्योगीकरण एक ऐसी वृहत् प्रक्रिया है जिसमें छोटे-छोटे उद्योगों का स्थान बड़े-बड़े उद्योग ले लेते हैं।
लौकिकीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें वस्तु या घटना को धार्मिक आधार पर न देखकर उन्हें तार्किक, बौद्धिक तथा लौकिक आधार पर देखा जाता है।
पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण ही पश्चिमीकरण है।
संस्कृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसमें कोई निम्न हिन्दू जाति अपने जीवन स्तर को उच्च हिन्दू जाति के स्तर तक पहुँचाने का प्रयास करती है ।
नारी के प्रति सम्मान की मात्रा को समाज की सभ्यता का एक मानदण्ड माना जाता है अल्टेकर ।
सामाजिक रूपान्तरण एक तुलनात्मक अवधारणा है।
सर्वप्रथम 'जर्मन आइडियोलॉजी में कार्ल मार्क्स ने सामाजिक रूपान्तरण को एक ऐसा परिवर्तन मान है जो हमें क्रान्ति की ओर ले जाता है।
एम. एन. श्रीनिवास मानते हैं कि परम्परागत समाजों में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का बढ़ना ही सामाजिक रूपान्तरण है।
जब समाज में प्रगति, विकास, आधुनिकीकरण आदि देखने को मिलता है, तो इस स्थिति को सामाजिक रूपान्तरण का नाम दिया जाता है।
गुन्नार मिर्डल ने एशियन ड्रामा में लिखा है कि - "सामाजिक परिवर्तन को समझने के लिये यह जानना जरूरी है कि किसी समाज की सामाजिक तथा आर्थिक संस्थाओं में होने वाले परिवर्तनों की प्रकृति किस प्रकार की है। जब सामाजिक तथा आर्थिक संस्थाओं में इस तरह परिवर्तन किया जाता है जिससे विकास सम्बन्धी लोगों की इच्छाओं को पूरा किया जा सके, तभी ऐसे परिवर्तन को हम सामाजिक परिवर्तन और रूपान्तरण कह सकते हैं।'
बहुल परम्पराओं को एस. सी. दुबे ने 6 भागों में विभाजित किया है-
(1) शास्त्रीय परम्पराएँ,
(2) स्थानीय परम्पराएँ
(3) क्षेत्रीय परम्पराएँ,
(4) राष्ट्रीय परम्पराएँ
(5) पश्चिमी परम्पराएँ,
(6) नवीन परम्पराएँ।
वैदिक काल में महिलाओं की स्थिति बहुत उन्नत थी।
उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की दशा गिरने लगी थी।
मुगल काल में मुगल साम्राज्य की स्थापना के बाद स्त्रियों की दशा तो अत्यन्त दयनीय हो गयी थी।
वैश्वीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था साझी अर्थव्यवस्था के रूप में कार्य करती है।
प्रोफेसर एम. एन. श्रीनिवास, रॉबर्ट रेडफील्ड, मैकिम मैरियट, डी. एन. मजूमदार, डॉ. एस. सी. दुबे, डॉ. योगेन्द्र सिंह आदि - विद्वानों ने भारत में सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति, दिशा एवं रूपान्तरण आदि का अध्ययन किया।
उद्विकासीय उपागम के प्रमुख स्रोत धार्मिक ग्रन्थ महाकाव्य, पौराणिक साहित्य एवं मौखिक परम्पराएँ आदि रहे हैं।
सांस्कृतिक उपागम के अन्तर्गत संस्कृतिकरण, पश्चिमीकरण, लघु एवं दीर्घ परम्पराएँ, सार्वभौमिकरण और स्थानीयकरण तथा बहु-ध्रुवीय परम्पराएँ आती हैं।
संरचनात्मक उपागम के अन्तर्गत समाज का संरचनात्मक विश्लेषण करके परिवर्तन एवं रूपान्तरण का अध्ययन किया जाता है।
संरचनात्मक उपागम में भूमिकाओं, प्रास्थितियों, समूहों तथा श्रेणियों का विश्लेषण किया जाता है। भारत में लुई ड्यूमा ने सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन के लिये ज्ञानात्मक ऐतिहासिक उपागम को काम में लेने की बात कही।
सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन हेतु कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक ऐतिहासिक उपागम को प्रस्तुत किया है।
सामुदायिक भूमि का वितरण सम्बन्धी कार्यक्रम प्रो. डी. पी. मुकर्जी, ए. आर. देसाई तथा राधा कमल मुकर्जी आदि ने भारत में सामाजिक परिवर्तन का अध्ययन मार्क्सवादी उपागम के आधार पर किया है।
भारत में सामाजिक परिवर्तन एवं रूपान्तरण के अध्ययन के लिये योगेन्द्र सिंह ने एकीकृत उपागम की बात की।
डॉ. योगेन्द्र सिंह के अनुसार - सांस्कृतिक तथा सामाजिक संरचनाओं में आन्तरिक तथा बाह्य कारकों के द्वारा परिवर्तन होते हैं।
संस्कृतिकरण ऐसी सांस्कृतिक और सामाजिक प्रक्रिया है, जो भारत के विभिन्न भागों में हिन्दुओं के बीच व्यापक रूप में पाई जाती है।
समानतावाद और लौकिकीकरण दोनों ही मानवतावाद में निहित हैं।
कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम सन् 1948 में बना।
समान वेतन अधिनियम सन् 1976 में बना।
भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम 1872 में बना।
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- अध्याय - 1 भारतीय समाज की संरचना एवं संयोजन : गाँव एवं कस्बे
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- अध्याय - 12 संयुक्त परिवार
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- अध्याय - 13 भारत में सामाजिक वर्ग
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- अध्याय- 14 जनसंख्या
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- अध्याय - 15 भारतीय समाज में परिवर्तन एवं रूपान्तरण
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- अध्याय - 16 राष्ट्रीय एकीकरण को प्रभावित करने वाले कारक : जातिवाद, साम्प्रदायवाद व नक्सलवाद की राजनीति
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